हमें सहियोग करें..
देश के आमजन के उद्देश्यों व उनके मौलिक अधिकारों (मूलभूत अधिकार) की पुर्ति हेतु संकल्पित पक्ष "अखिल भारतीय श्रमिक पार्टी" एक ऐसी पार्टी/पक्ष है जो देश के सभी 90% आमजनों के लिये दृणसंकल्पित है, न कि 10% पूँजीपतियों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये जो आपका शोषण करते हैं, जो अपने उद्देश्य पूर्ति के लिये कुछ ऐसी राजनीतिक पार्टियों को मोटी रक्कम फंड के नाम से देकर सौदा करते हैं कि सत्ता में आने के बाद वो उन्हे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट/टेण्डर के नाम से व बड़े-बड़े लोन को मांफ करने के नाम से फंड को दस गुना लाभ के जरिये वापस करेंगे, और ये राजनीतिक पार्टियाँ इन पैसों का इस्तेमाल बड़े-बड़े इवेंट, रैलियों, जनसभा आदि व कार्यक्रमों में भीड़ इकठ्ठा करने के लिये गरीब लोगों को 200 से 500 रूपये तक का लालच देकर भीड़ जमा करते हैं, और अपने पक्ष में नारेबाजी करवाते हैं, जिनके माध्यम से ये पार्टियाँ माहौल को अपने पक्ष में बनाते हैं, ये गरीब श्रमिक, किसानों की मजबूरियों का लाभ अपने हित-लाभ / सत्ता पर आसीन होने के लिये उठाते हैं और बकौल आम जनता इनके झांसे में आ जाती है, वो गरीब ये नहीं जानते हैं कि उनके द्वारा लिये गये चंद रूपयो का खामियाजा पूरा देश झेलता है इतना ही नहीं ये जाति-धर्म, मजहब, नस्ल, वर्ग का भेद-भाव और डर दिखा कर नफरत की भावना व वैमनस्यता फैलाते हैं, ऐसे राजनीतिक दल चुने तो जनता के द्वारा जाते हैं लेकिन लाभ उन पूँजीपतियों को पहुँचाते है, जो इन्हे फंड के नाम पर मोटी रकम थमाते हैं। ये राजनीतिक पार्टियाँ श्रमिकों/किसानों गरीब मध्यम वर्ग बेरोजगार युवाऑ के हित को ताख में रख अपने हित-लाभ के खातिर कागजों पर कार्य करके अपने हित-चिंतको को ही सिर्फ लाभ पहुँचाते हैं जो इनका रात दिन गुनगान गाते हैं, जिनमे देश के बिके हुए मीडिया हाऊस भी शुमार हैं, उनमे इनकी चाटुकारिता करने वाले एंकर जो सालाना करोड़ों का पैकेज उठाते हैं, वहीं सच्च की आवाज उठाने वाले पत्रकार जेल में ठूँसे जाते हैं या अपनी जांन गवांते हैं और वहीं वो फटेहाल नजर आते हैं, ये अपने पत्रकार साथियों के लिये सुरक्षा कानून बनाने के लिये भी कभी सरकार पर दबाव नहीं बनाते, इतना ही नहीं देश की आजादी से लेकर संविधान निर्माण करने वाली वकीलों की कम्युनिटी के लिये भी सुरक्षा के कोई पुख्ता कानून बनाने के लिये सरकार पर दबाव नहीं बनाते हैं ना ही वकिलों के पक्ष में कभी खड़े नज़र आते है, न ही जनता के पक्ष में कोई मुहिम चलाते है, यदि कोई अवाज उठाते भी हैं तो देर रात में कुछ क्लिप चलाने के बाद सरकार की तारीफ में पूरा दिन तारीफ़ करते नजर आते हैं, उधर सरकार भी सिर्फ जुमलेबाज़ी से ही लोगों को लुभाती है। क्योंकि अब देश में जनता की फिक्र करने वाले 'नेता' नहीं सिर्फ 'राजनेता' बचे हैं जो सिर्फ एन-केन-प्रकारेण सत्ता लुलोभी हैं, उनका तो मानना है जनता 'मरे तो मरे' हमें तो सत्ता चाहिये...! साथियों अब वक्त आ गया है कि हमे एक बार फिर ऐसे आतितायियों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी....जिसके लिये हम सभी को एकत्र हो कर लड़ना पड़ेगा... जिसमें आप सभी का योगदान/सहियोग आपेक्षित है... आप सभी से अनुरोध है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुड़ें व अपने लोगों को जोड़ें, तथा आर्थिक सहियोग में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें ताकि सत्ता लुलोभी पूँजीपतियों के दलालों से लड़ने में मद्द मिले। आपका योगदान शहीदों के बलिदान को इनके हाथों मिटने से बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। जय हिंद...
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